Success Stories
ग्रीश्मकालीन सब्जी उत्पादन द्वारा आय में वृद्धिः
श्री महावीर प्रसाद, पिता श्री लोचन महतो, गांव -ंउचय अमनारी, प्रखण्ड -ंउचय सदर, जिला -ंउचय हजारीबाग, अपने परिवार का भरण-ंउचयपोशण खेती-ंउचयबाड़ी से करते हैं। उनकी आमदनी का मुख्य स्त्रोत सब्जियों की खेती है। चॅूंकि इनका गॉंव षहर से मात्र 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है अतएव इन्हे सब्जियों को बेचने में कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। यद्यपि इनके परिवार का भरण-ंउचयपोशण पारम्पारिक खेती एवं सब्जी उत्पादन से हो रहा था परन्तु युवा एवं प्रगतिषील विचार के होने के वजह से श्री महावीर प्रसाद को खेती से प्राप्त आमदनी से संतुश्टी नहीं हो रही थी और अक्सर वे गॅाव छोड़कर किसी महानगर में जाकर रोजगार करने की सोचते थे। जब वे कृशि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में आये तो उद्यान विषेशज्ञ से परिचर्चा के दौरान उन्हें उन्नत कृशि तकनीक से सब्जी उत्पादन का परामर्ष दिया गया और उद्यान विषेशज्ञ ने उनके खेत व गॉंव का परिभ्रमण भी किया। उद्यान विषेशज्ञ के सलाह पर उन्होंने वर्श 2014 में ग्रीश्मकालीन भिण्डी उत्पादन विषेश रूप से करने का निर्णय किया और 0.75 एकड़ भूमि में ग्रीश्मकालीन भिण्डी किस्म रोहिनी की बुवाई बीजोपचार के बाद किया। उन्नत कृशि प्रौद्योगिकी अपनाते हुए उन्होंने खरपतवार नियंत्रण एवं फसल सुरक्षा पर विषेश ध्यान दिया। फसल की ब-सजय़वार के दौरान वे निरन्तर कृशि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में रहे एवं उद्यान विषेशज्ञ भी उनके खेत व उनके गाफंव का परिभ्रमण अक्सर करते थे।
फसल की बुवाई के लगभग 7 सप्ताह बाद पहली तुड़ाई उन्हें प्राप्त हुई और उद्यान विषेशज्ञ के सलाह पर उन्होंने प्रति एक दिन के अन्रि पर भिण्डी की तुड़ाई षुरू की। चॅूंकि प्रारंभ में श्री महावीर ने खरपतवार नियंत्रण तथा फसल सुरक्षा पर विषेश ध्यान दिया था जिसकी वजह से भिण्डी की ब-सजय़वार अच्छी हुई थी और फसल पर किसी रोग विषेशकर पिली पŸा षिरा रोग का प्रकोप नहीं हुआ था। श्री महावीर जब भी बाजार में बिक्रय हेतु भिण्डी ले जाते मण्डी में उनकी भिण्डी सबसे पहले बिक जाती और कीमत भी औसतन रू 36/ से रू. 40/. प्रति किलो प्राप्त हेता। इससे उन्होंने निश्कर्श निकाला भिण्डी तुड़ाई उचित समय पर करनी चाहिए। जबकि पूर्ब में इनके परिवार के सदस्य कभी भी इन्हें एक दिन के अन्तर पर भिण्डी की तुड़ाई करने से रोकते थे क्योंकि ऐसा करना वे भिण्डी की उत्पादन में कमी से जोड़कर देखते थे। 0.75 एकड़ भूमि से श्री महावीर ने 48.5 क्विंटल भिण्डी प्राप्त किया और खर्च की कटौती के पष्चात् उन्हें रू 95000/. का षुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ। फसल की अवधि में उनके खेत पर कृशि विज्ञान केन्द्र ने प्रक्षेत्र दिवस का भी आयोजन किया जिसमें गॉंव व निकटवर्ती क्षेत्र के लगभग सौ किसानों ने भाग लिया और अमनारी में ग्रीश्मकालीन भिण्डी की खेती व्यापक पैमाने पर करने की इच्छा व्यक्त की। अब श्री महावीर प्रसाद भिण्डी के अतिरिक्त गाजर, मूली, षिमला मिर्च तथा बैंगन की खेती भी उन्नत कृशि तकनीकी अपनाकर करने लगे हैं और सब्जी की खेती से प्राप्त आमदनी से संतुश्ट हैं। वर्श 2014 में कृशि विज्ञान केन्द्र द्वारा उन्हें एक्सपोसर विजिट का भी ौका मिला और वे भरतीय सब्जी अनुसंधान केन्द्र, वाराणसी का भ्रमण किये। आज वे हजारीबाग मण्डी में पूरे वर्श सब्जीयॉं भेजते हैं और एक प्रगतिषील कृशक के रूप में इनकी गणना होती है। श्री महावीर प्रसाद से प्रेरित होकर उनके गॉंव के दर्जनों युवाओं ने सब्जी उत्पादन को व्यवसाय के रूप में अपनाया है और आगामी वर्शों में ग्रीश्मकालीन सब्जियों से ज्यादा लाभ प्राप्त करने हेतु अग्रिम बुवाई की योजना तैयार की है।
सिलाई -ंउचय जीविकोपार्जन का साधन
हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र की गृह विज्ञान विशय वस्तु विषेशज्ञ के सम्पर्क ने रीना देवी के जीवन में एक नया मोड़ ले आया। आज रीना देवी एक सफल महिला के रूप में उभर कर आ रही है, क्योंकि वह अपने जीवन में ही नहीं, अपितु अपने विकलांग पति श्री प्रभाकर के जीवन में भी अहम भूमिका निभायी। उन्होंने अपने पति के देखभाल का बीड़ा भी अपने उपर ले लिया। श्रीमती रीना मेहता, गॉंव -ंउचय चम्पाडीह, पोस्ट -ंउचय सूरजपूरा, पदमा, जिला -ंउचय हजारीबाग ने 2006 में बी. ए. की प-सजय़ाई समाप्त की। तद्पष्चात सन् 2007 में उनका विवाह श्री प्रभाकर कुमार सिंह, दीपूग-सजय़ा से हुई जिनका एक छोटा डेयरी फार्म था। षादी के तुरन्त बाद ही रीना के पति ने आकस्मिक दुर्घटना में अपना दाहिना हाथ गंवा बैठा। इतना ही नहीं प्रभाकर के माता-ंउचयपिता ने उन्हें आर्थिक सहायता देना छोड़ दिया। इस आर्थिक तंगी में उन्होंने 2007 में ब्लाउज बनाना प्रारंभ किया। लेकिन इससे उनका गुजर-ंउचयबसर बहुत ही मुष्किल से होता था। अतः
डींंअपत च्तेंंक . । चतवहतमेपअम िंतउमत
गुह विज्ञान की विशय वस्तु विषेशज्ञ का प्रोत्साहन पाकर वह 3 महिने का सिलाई कटाई का प्रषिक्षण लेने का मन बनाया।
अतः रीना देवी 2012 जनवरी से तीन महिने का प्रषिक्षण लिया जिसमें बच्चों का कपड़ा, जैसे बाबा सूट, -हजयबला जंघिया, विभिन्न प्रकार के फ्रॉक, ग्राश्मकालीन फ्रॉक एवं लेडिस गारमेन्ट्स में विभिन्न प्रकार के ब्लाउस, पेटीकोट, सलवार सूट, नाइटी आदि बनाना सीखा। इस प्रषिक्षण के बाद रीना में आत्मविष्वास इतना ब-सजय़ गया की सभी प्रकार के गारमेन्ट्स सिलाई करने लगी साथ ही साथ सिलाई सेन्टर खोलकर महिलाओं को भी सिलाई कटाई का प्रषिक्षण देती है। इतना ही नहीं वह स्वयं सहायता समूह का गठन एवं अन्य आय स्रोत संबंधित प्रषिक्षण भी महिलाओं को मुहैया कराती है।
अब रीना इतना विकास कर रही है कि इनके पति विकलांग होते हुए भी इन्हे हर कामों में मदद देते हैं। और अब रीना की आमदनी 5000/ प्रतिमाह हो गई है। इससे न सिर्फ उनका विकलांग पति ही नहीं लेकिन मुहल्ले की महिलाएं भी प्रेरणा पाकर सिलाई प्रषिक्षण प्राप्त कर रही हैं।
Vegetable Grower
Vegetable Grower: Shri Arun Kumar Mahto, S/O Lt. Pyari Mahto, 49 years old, Village: Guruchatti, P.O. Barkagaon, Panchayat: Barkagaon, Hazaribag- 825 311, Jharkhand, Contact No. 9431500001, 9006156561 hold 1.2 ha land, 0.8 ha irrigated and 0.4 ha un-irrigated. Arun Kumar is a very hard working, persevering and a promising progressive farmer. After the completion of matriculate he began to support his farther in farming activities. His farming system was subsistence in nature. The major crops cultivated by him was paddy followed by wheat and potato among the pulses very little area was covered by him and cultivated Bengal gram, red gram, black gram, mustard etc. The main source of his farm income depended on vegetable cultivation.
Smt Reena Mehta – A women tailor during rainy and winter season. The vegetable farming provided him hard cash for the family maintenance however the income was not satisfactory. The vegetables he cultivated were tomato, brinjal, chilli, okra, garden pea, cow pea, frenchbeans, palak, raddish, carrot and onion. The whole families including his parents were involved in farming. He owned a pair of bullock for ploughing and carrying the farm goods. The cows he kept were local breed producing 0.5 – 1 kg milk per day. The main purpose of keeping the livestock was to obtain cowdung manure for his barry land and ploughing his field for agricultural operation. He always thought of keeping more cows to supply milk in the local market. In the meantime the expenses on education of his children were also going up. So he concentrated on keeping cows of crossbreed. He had land for producing fodder too which is a prime requirement for running a successful dairy farm.
Mr. Arun Kumar had schooling upto matric. During his studies he was intelligent but due to lack of financial support from family he could not continue his studies further and took farming as a profession. He was a well recognized youth of his village and nearby areas and used to participate in social and cultural activities in his panchayat. He got married at an early age of 21 and he became the father of one son and two daughters in coming few years. This prompted him to start dairy farm on commercial basis. At present he is a proud father of 3 educated children. Son B.Tech engineer 2 graduate daughters and he is also blessed with his mother of 105 years old.
Successful Dairy Farmers
Mr. Arun Kumar of Barkagaon village had one local cow which produced 0.5 – 1 kg milk per day. Once the cow became sick so he consulted the animal compounder for the treatment which cost Rs. 150. For him this was a big amount and an idea came to his mind to take animal treatment as profession. Under TRYSEM he opted for para veterinary training and thus he got opportunity to get admission in Holy Cross KVK Hazaribag in the year 1991. Completion of the course he started the treatment of animal in his village. Soon his reputation as animal compounder spread in his locality and frequent call he used to receive from the farmers having cattle for treatment. The treatment of cattle became his main source of earning which ranged between Rs. 3000 – 4000 per months. Since his local cows were looked after by his parents, in course of time he could accumulate sufficient money to replace his local cows with a pair of crossbred cows in 1995. This generated new source of income by selling milk in the village. Besides he approached nationalized bank (Bank of India) and got sanctioned an amount of Rs. 20,000/- as loan for establishing mini dairy unit. In 1998 beginning he had 4 cross bred cows (3 mulch + 1 dry). This gave him a gross income went on increasing since the number of cows also increased year after year. By the year 2011 he could procure 15 cows (11 mulch + 1 dry) and his gross income has give up to Rs. 100,3750/- As he was trained in para veterinary course he was looking after and keeping close watch on the feeding, management and health care of the animals. In the mean time he has already obtained training in Artificial insemination (AI) from BAIF. He practiced AI in his locality and nearby villagers.
This became an additional source of income to him. He also knew the importance of green fodder in the diet of dairy animals. So he utilized the land for the cultivation of green fodder like berseem, oat, maize, MP cherry etc. Being good farmers he has got plenty of paddy straw and wheat bhusa as dry fodder for his cows. He did not ignore the importance of concentrate prepared from maize, oilcake, bran, pulse, chunnies, minerals and vitamins in the ration. Timely veterinary care given to the animals was an added advantage in the development of his dairy farm. By the year 2011 he was able to engage 3 daily labourers which were in addition to 2 family members to serve as full time labourers. He always kept his farm clean, so that he could supply clean hygienic milk to the customers. To maintain cleanliness he frequently sterilized milk cane after the use. To avoid the spread of contagious diseases he kept the dairy farm always clean and dry. In the year 2011, he could afford to send his son for B. Tech course in Electrical and Electronic engineering at New Delhi. By the beginning of 2015 his dairy farm has 18 cows producing 200 litres of milk per day which gives him a gross annual income of Rs. 21.6 lakhs. His dairy farm infrastructure has also expanded in previous decade as he received an amount of Rs. 10, 98,000.00 for constructing the dairy farm buildings. With the income from milk sale, treatment of animals and artificial insemination practice he could purchase a chaff cutter, 10 HP diesel pump, grinding machine, motorbike, power tiller (on subsidiary) water lifting pump and 0.07 acre of land. He also got his daughter married and could afford to spend Rs. 5 lakhs for this purpose.
At present Mr. Arun Kumar Mahto is a self contented person as he is writes happy to run the medium sized dairy business successfully which gives him an annual net income of 7.5 lakhs and an addition income of 1.5 lakhs per annum through animal treatment and artificial insemination.
Location of the dairy farm is close to the house, availability of green fodder is round the year, availability of paddy straw / bhusa in abundance at low cost in the village itself, expertise is preparing the balanced ration, high demand of milk in the village and nearby villages, supply of surplus milk in NDDB located in Barkagaon bazaar and involvement of the family members in the dairy business are his big support. 50 family in the village started dairy farm financed by Nationalised banks (Bank of India, Bank of Baroda, SBI etc) through dairy development department Consumption of milk is increased in the families, providing higher education to children from dairy income.
ATMA Hazaribag awarded him for the production of green fodder round the year.
His annual income
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice | - | 18 |
Yield of Crop / Product | - | 72,000/- |
Sale Value | - | 21,60,000/- |
Input Cost | - | 10,11,600/- |
Labour Cost | - | 3,74,000/- |
Any Other Cost | - | 10,000/- |
Net Saving / Net Profit | - | 7,64,400/- |
Successful Dairy Farmer
Crop Production
Sri Chhabindra Prasad S/O Sri Bharat Mahto of village: Turibar, Tola: Sondiha was earning his livelihood through farming. He holds 4.8 ha land, irrigated: 2 ha and un-irrigated: 2.8 ha. He used to grow paddy as a main & major crop followed by potato & winter season vegetables. As animal resources he had a pair of bullock for ploughing and four local goats. Since his parents were also contributing from their earning to him so he was able to run his family of six members including his three daughters, one son & his wife. However, he always dreamt of earning more from farming. Being a young farmer he used to participate in Kisan Mela & Krishi Pradarshni at block level. In the year 2003 he participated in the Churchu Block Krishi Mela Sah Pradarshni held on 25 th December. There his vegetable produces caught the eyes of Horticulturist of KVK, Holy Cross, Hazaribag. He was enquired by the KVK Horticulturist for winning a good number of prizes in the exhibition. He satisfied the queries and was suggested to come over to Holy Cross Krishi Vigyan Kendra for learning latest advances in modern agriculture. KVK Horticulturist also visited his farm and village. Now, he started farming scientifically and commercially. The nearest Jhumra Weekly Market where traders from Dhanbad & Assansol were frequent visitors recognised him and his produce were sold smoothly. In the year 2004 he cultivated rainy season tomato (Hybrid F 1 )in 0.75 acre of land and earned a gross income of Rs. 70, 000/-. This encouraged him to grow potato in the ensuing rabi season and earned Rs. 40, 000/- from half an acre.
During tomato hybrid (F 1 ) and potato cultivation he came closer to KVK experts in general and horticulturist in particular. He was advised to grow rainy season onion (cv. Agrifound Dark Red) by KVK scientist. He received training in nursery bed preparation seedling raising and visited the demonstration plots of rainy season onion conducted under the guidance of KVK scientists. In the year 2007, he got a good success in rainy season onion and earned Rs. 60, 000/- from 0.8 acre of land. Seeing his successful cultivation of rainy season onion and the returns gained from market the whole village and the adjoining villages adopted the crop and at present the villages around Jhumra Weekly Market are the major kharif onion growing area of the district. The National Horticultural Research & Development Foundation (NHRDF) Patna Centre organised a field Day & Farmers’ Day, at village Turibar (Block : Daru) to promote the cultivation of rainy season onion in collaboration with Holy Cross Krishi Vigyan Kendra.
Mr. Chhabindra Prasad has full trust on the technologies introduced by Holy Cross Krishi Vigyan Kendra, Hazaribag. Last year he got the latest technology for growing broccoli from KVK and he not only successfully cultivated the crop but also marketed the produce at profitable rate (Rs.25/- per piece of broccoli weighing 400 g each). Sri. Chhabindra Prasad grows sugarcane every year in an acre of land and prepares “Gur” (Jaggery) for sale. Since last five years he started goatery unit in systematised way with 3 does & one buck of Beetal breed. His goatery unit is running in profit and every year he earns Rs. 30, 000/ from this unit. The forest land in the vicinity of his village provides sufficient growing place for the herd of goats. The 0.7 acre pond gives him an income of Rs. 25000/- from sale of fishes besides providing irrigation water to summer cucurbits. As a whole his annual income from integration of all his enterprises ranges between Rs. 3 to 3.5 lakhs.
Prize winner in agricultural exhibition held at block & district level. Appreciation certificate from seed companies.
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice | ||
Paddy | 2 acres | 3 acres |
Sugarcane | 0.5 acres | 1.0 acres |
Potato | 0.5 acres | 0.8 acres |
Tomato | 0.2 acres | 0.5 acres |
Elephant foot yam | - | 0.5 acres |
Kharif Onion | - | 0.5 acres |
Other vegetables | 0.5 acre | 1.0 acre |
Yield of crop / product Yield (q/ha) | ||
Paddy | 62.5 | 80.0 |
Sugarcane | 300 | 400 |
Potato | 150 | 220 |
Tomato | 200 | 350 |
Elephant foot yam | - | 600 |
Kharif Onion | - | 240 |
Other Vegetables | 180 | 250 |
Sale Value | 2, 30, 000.00 | 5, 25,000.00 |
Input Cost | 45, 000.00 | 65, 000.00 |
Labour Cost | 65, 000.00 1, | 20, 000.00 |
Any Other Cost | 15, 000.00 | 25, 000.00 |
Net Saving / Net Profit | 1, 05, 000.00 | 3, 15, 000.00 |
Successful farmer – Chhabindra Prasad
Success Stories 6
श्री रधुनाथ यादव पहले पुरानी परम्परागत पद्वति से खेती करते थे । वे 6 हेक्टेयर खेत के मालिक हैं। जिनमें इन्होने धान, गेहूॅं, मक्का एवं चना की खेती करते थे । जिससें इनको बहुत ही कम उत्पादन मिलता था क्योकि ये अपने घर का ही पूरानी प्रजातियों का ही बीज बुवाई के लिए प्रयोग करते थे । कृशि विज्ञान केन्द्र से जुड़ने से पूर्व इनकी फसल की उत्पादकता इस प्रकार थी : धान 35 -ंउचय 45 क्विंटल/हेक्टेयर, चना 7 -ंउचय 9 क्विंटल/हेक्टेयर, सरसों 3 -ंउचय 5 क्विंटल/हेक्टेयर, गेहूॅं 20 -ंउचय 25 क्विंटल/हेक्टेयर थी । इनको न तो किसी की प्रजाति के बारे में जानकारी थी न ही किसी दवा एवं उर्वरक की मा़त्रा के बारे में जानकारी थी । जब सन् 2008 में हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित केन्द्र पर प्रषिक्षण के दौरान इनकी जान पहचान कृशि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक से हुआ । सन् 2008 में ही इनको मुर्गी की दो उन्नत नस्ल कारी ष्यामा एवं कारी निर्भिक दिया गया जो देषी नस्ल की मुर्गी से काफी अधिक अण्डा देने वाली नस्ल है । इस नस्ल की देखभाल अच्छी तरह से किये । अण्डा का उत्पादन देषी मुर्गी के मुकाबले ज्यादा मिला ।
सन् 2010 में हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र द्वारा पुन्डौल गॉंव में किसान क्लब की स्थापना किया गया । जिसमें श्री रधुनाथ यादव की सक्रिय भूमिका रही इनकी भूमिका को देखते हुए इनको किसान क्लब का अध्यक्ष बनाया गया उनका क्लब गॉंव के विकास के लिए अच्छा काम कर रहा है । सन् 2010 में ही हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक श्री मनोज कुमार सिंह द्वारा इनके प्रक्षेत्र पर समन्वित पोशक प्रबन्धन विशय पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्षन, किसान के खेत पर परीक्षण के तहत धान गेंहूॅं चना, सरसों आदि फसलों पर प्रत्यक्षण लगाया गया । इन्होने बहुत ही निश्ठा पूर्वक प्रदर्षन प्लॉट लगाये । जिनके माध्यम से इनकी उन्नत बीज, जैविक खाद, जैविक उर्वरक (राइजोबियम, पी0एस0बी एजेटोबैक्टर, ब्लू ग्रीन अलगी)के साथ मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग कराया गया । इस पद्धति से खेती करने पर इनको बहुत ही अधिक उत्पादन मिला जिसके बारे में इनको जानकारी नहीं थी ।
इसके बाद से ही इनका खेती में और ज्यादा मन लगने लगा और ये अपने सभी खेतों की मिट्टी जॉंच कराते हैं व इसके आधार पर सन्तुलित मात्रा मं उर्वरकों का प्रयोग करते हैं एवं नई नई प्रजातियों का प्रयोग करते है । आज इनका उत्पादन करीब 35 -ंउचय 75 : तक ब-सजय़ गया है । धान की फसल में 40 : गेहूॅं की फसल में 75 : सरसों की फसल में 75ः चना की फसल में 75 : एवं मक्का की फसल में 35 : तक की वृद्वि हुई है ।
सन् 2011 -ंउचय 2012 में इनको सूरजमुखी की खेती की जानकारी दी गई । अब ये अपने फसल चक्र में सूरजमुखी की खेती को सम्मलित कर लिए हैं ।
आज श्री रधुनाथ यादव की स्थिति पहले से बहुत बेहतर हो गया है अब ये अपने प्रक्षेत्र पर ही सारा ध्यान देते है कही बाहर जा कर कार्य करने की जरूरत नहीं पड़ती है ।
कृशि विज्ञान केन्द्र से जुड़ने से पूर्व ये सब्जी की खेती के बारे में नहीं जानते थे । वे बाहर से सब्जी खरीद कर खाते थे । लेकिन अब ये सब्जी की खेती भी प्ररम्भ कर दिये है । जिसमें इनको बोदी से अच्छा आमदनी मिला । बैंगन एवं भिण्डी की खेती कर रहे हैं । अब इनको सालोभर घर से ही सब्जी मिल जाती है । अधिक होने पर बाहर जाकर बाजार में सब्जी का विक्रय भी करते है । सब्जी की नगदी फसल के रूप में खेती कर रहे हैं ।
अब इनको ध्यान समन्वित खेती की तरफ ब-सजय़ रहा है । अंत में उन्न्त नस्ल की गाय पालन के बारे में सोच रहे हैं । जल्दी ही वे डेयरी का व्यवसाय प्रारम्भ करने जा रहे हैं ।
आज रधुनाथ यादव एक सन्तुश्ट एवं सफल किसान है । इनकी आर्थिक स्थिति पहले से अच्छी है । कृशि विज्ञान केन्द्र इन्हे तकनीकी सहायता प्रदान करने हेतु निरन्तर प्रोत्साहन देती रहती है ।
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice | Maize(Imbalance Fertilizer) | Maize INM |
Yield of crop / product /ha | 28.0 | 39.0 |
Sale Value /ha | 37744 | 46740 |
Input Cost /ha | 17863 | 21410 |
Labour Cost /ha | 8900.00 | 8900.00 |
Any Other Cost Ploughing) /ha | 5400.00 | 5400.00 |
Net Saving / Net Profit /ha | 15881 | 25330.00 |
Crop : Mustard
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice | Mustard (Imbalance fertilizer) | Mustard (INM) |
Yield of crop / product /ha | 8.06 | 12.16 |
Sale Value /ha | 28210.00 | 42350.00 |
Input Cost /ha | 23210.00 | 24298.00 |
Labour Cost /ha | ||
Any Other Cost Ploughing /ha | ||
Net Saving / Net Profit /ha | 50000.00 | 18052.00 |
Crop : Wheat
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice | Wheat (Imbalance fertilizer) | Wheat (Balance ) |
Yield of crop / product /ha | 25.00 | 38.20 |
Sale Value /ha | 42585.00 | 64940.00 |
Input Cost /ha | 22550.00 | 25905 |
Labour Cost /ha | 4560.00 | 4560.00 |
Any Other Cost Ploughing) /ha | 8757.00 | 8757.00 |
Net Saving / Net Profit /ha | 20035.00 | 39035.00 |
Successful Farmer – Raghunath
Successful Woman Tailor – Asha Devi
Smt Asha devi, Village : Arua, P.O. Bishnugarh, Block: Bishnugarh, Hazaribag, Mob. No. 7870006753, 9955610925. after completion of the training she was at home doing her daily routine work in the house and field. In the same year in 2002 in the month of October the home Scientist from Holy Cross KVK made a visit and encouraged her to start a shop. In the beginning she had no self confidence to start a centre. With the encouragement from Home Scientist and Asha’s husband decided to run a tailoring centre. To gain more confidence again she practiced to make garments and took some help from a village tailor. In the beginning she started with the ladies garments like blouse, Sari falls and skirt. As the time passed, women started to flock to her centre to give measurement and felt free to give their cloth to stitch. They demanded to open a tailoring centre where girls and women could learn dress making. So in the year 2002 she opened a tailoring centre with three machines. Girls & women attended her class in 2 – 3 shifts of at least 10 – 12 students in one batches. By seeing the interest of girls and women, in nearby villages she started 3 centres more and they are going on. She supervises these three centres twice in a week. For the smooth running of her centre she has employed two ladies to help her whom she pays per month a good amount of money.
Since 2002 to 2011 she has trained at least 300 women and girls of nearby villages and 140 women have started to stitch garments by themselves. During training she teaches to make frock with different designs, blouses, skirts and salwar suit with embroidery. She teaches picko and machine embroidery. Now she earns Rs. 5,000 – 6,000/- per month. On occasions of big feast like Durga Puja, Muhram. Marriage parties and diwali, she earns at least 10,000/- per month. Again she bought 6 more sewing & embroidery machines. For fast stitching she has electrified the machines by attaching motors to them. She is a good support for her family and is able to meet the expenses of education of her four children in an English medium school. In her progress KVK has played a big role because always she was guided and encouraged by frequent visit and the continuous guidance of the KVK scientist.
Her husband Ramesh supports her in buying cloths, packing and giving back ready garments and also helps her in all the household activities. She continues to stitch different garments. Her success comes not only from her skill as a tailor but also due to her ability to understand customer’s need. So not only ladies and children’s garments she makes now, but also gents pant and shirt, even coat, she has started to cut and stitch which gives her more income. Asha Devi has become an inspiration for the girls and women of her area. She conducts tailoring training for girls and women of the locality. Upto now she has trained more than 2000 girls and women. Family members are very happy with her because she has become self reliant and supports the family financially from her earning. Now she is able to deposit Rs. 12,000/- per year in Alliance LIC. Her annual income is around Rs. 70,000/-.
Impact Factor | Before Adoption | After Adoption |
---|---|---|
Crop / Agricultural Practice/Dress making | - | 1 |
Salwar Suit (per month) | - | 15 |
Blouse(per month) | - | 35 |
Skirt(per month) | - | 10 |
Frock(per month) | - | 8 |
Salwar Suit (per month) | - | 2250 |
Blouse(per month) | - | 2800 |
Skirt(per month) | - | 300 |
Frock(per month) | - | 800 |
Input Cost (per month) | - | 1000 |
Net Saving / Net Profit (per month) | - | 5150.00 |
ओल : सूरन, -ंउचय निष्चित आय का साधन
श्री प्रयाग महतो, पिता -ंउचय श्री हरिलाल महतो गांव-ंउचय कंचनपुर प्रखण्ड-ंउचय कटकमसांडी की आमदनी का मुख्य साधन सब्जियों की खेती है। वे बहुत प्रकार की सब्जियॉ जैसे खीरा, लौकी, करेला, बैंगन, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, फूलगोभी, बंदगोभी, पालक, मूली, गाजर इत्यादि घर के नजदीक स्थित जमीन पर उगाया करते थे जिससे उनके परिवार की आवष्यकताएं पूरी होती थी परन्तु कुल आमदनी बहुत अच्छी नहीं थी। कृशि विज्ञान केन्द्र हजारीबाग ने उन्हे ओल ;सूरन की खेती षुरू करने का सलाह दिया और उन्हे बताया कि कम परिश्रम तथा देखभाल द्वारा सिर्फ 6 माह में अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। श्री प्रयाग महतो ने प्रथम वर्श ;2010द्ध ओल के 50 किलोग्राम बीज कन्द घर के नजदीक बाड़ी जमीन में लगाई जिसमे उन्हें 6 माह बाद 250 कि,ग्राम ओल प्राप्त हुए। अच्छी उपज व बाजार में अच्छी कीमत को देखते हुए उन्होने कुल उत्पादन को अगले वर्श खेती हेतु बीज कन्द के लिए रखना ज्यादा लाभकारी सम-हजया। अगले कुछ वर्शों तक श्री प्रयाग महतो ओल की खेती का क्षेत्र ब-सजय़ाते गए। वर्श 2016 में कुल 20 कि्ंवटल ओल बेचकर उन्होने रू0 50,000/-ंउचय की आमदनी प्राप्त की।
श्री प्रयाग महतो को ओल की खेती से मिली आमदनी से प्रभावित होकर करीब दर्जनों किसानो ने पिछले वर्शो में ओल की खेती षुरू कर दी है और हरेक किसान को मात्र 180 दिनों में रू0-ंउचय 15000-ंउचय 20,000/ की आमदनी हो रही है। कृशि विज्ञान केन्द्र अक्सर ओल उत्पादकों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने की तरीके बताता रहता है फलस्वरूप ओल की उत्पादकता 60-ंउचय65 टन/हैक्टर तक मिलने लगी है। ओल की फसल किसानों को पसंद आ रही है और हजारीबाग में इसका अच्छा बाजार भी उपलब्ध होने की वजह से ओल :किस्म-ंउचयगजेन्द्र, की खेती करने वाले किसानो की संख्या में ब-सजय़ोतरी हो रही है। फसल क्रम में इसे अपनाये जाने के कारणों को पूछने पर श्री प्रयाग महतो ने फौरन जवाब दिया कि लागत राषि का मात्र 6 माह में 4 से 5 गुणा आमदनी के रूप में प्राप्त हो जाना ही इसकी लोकप्रियता तथा अपनाये जाने का मुख्य कारण है। इसके साथ ही ओल का भण्डारण किसान अपने घर पर आसनी से कर सकता है।
बरसाती प्याज की खेती से आमदनी
श्री अषोक प्रसाद, पिता-ंउचय रामवृक्ष महतो गॉव-ंउचय रामदेव खरिका, प्रखण्ड-ंउचय दारू सालो भर सब्जी की खेती कर अपनी जीविका चलाते हैं। वह कई सब्जियॉ जैसे-ंउचय फूलगोभी, बन्दगोभी, मटर, फ्रेंचबीन, टमाटर, ओल, कच्चू, लोबिया, पालक, बैंगन, मिर्च, आलू, मूली इत्यादि अपने घर के नजदीक स्थित ’बाड़ी’ में उगाते हैं। यद्यपि वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों सहित सब्जियों की खेती परिश्रम पूर्वक करते हैं लेकिन आमदनी पर्याप्त नहीं होती है।
के. वी. के. हजारीबाग द्वारा आयोजित उनके गॉव में एक दिवसीय प्रषिक्षण कार्यक्र्रम में भाग लेने के समय वे उद्यान विषेशज्ञ के सम्पर्क में आये। विषेशज्ञ से विस्तृत बातचीत करने के बाद उन्हें बरसाती प्याज( किस्म एग्री फाउण्ड डार्क रेड) की खेती का सु-हजयाव अच्छा लगा। बरसाती प्याज( किस्म एग्री फाउण्ड डार्क रेड) की खेती से मात्र चार माह में अन्य सब्जियों की तुलना में अच्छी आमदनी प्राप्त होती है। श्री अषोक ने उपर्युक्त सु-हजयाव पर अमल करते हुए 5 कट्ठा (0.08 हेक्टर) जमीन पर बरसाती प्याज( किस्म एग्री फाउण्ड डार्क रेड) की खेती षुरू किया। प्याज की खुदाई अक्टूबर माह के मध्य से षुरू हुई जब प्याज का बाजार में कीमत रू. 20/-ंउचय प्रति किलो ग्राम था। श्री अषोक महतो ने कुल 20 क्विंटल प्याज बेचा । प्याज की खेती से उन्हे कुल रू. 40,000/-ंउचय का आय प्राप्त हुआ । श्री अषोक महतो की बरसाती प्याज की खेती से प्राप्त आमदनी से प्रभावित होकर उनके गांव के अन्य दर्जनों किसानो से बरसाती प्याज की खेती षुरू कर दी है और मात्र 120 दिनों में बरसाती प्याज की खेती से उन्हें रू. 25,000 -ंउचय 30,000/-ंउचय की आमदनी हुई है जबकि लागत मात्र रू. 4,000 -ंउचय 5,000/-ंउचय था। कृशि विज्ञान केन्द्र ने किसानों को उन्नत कृशि तकनीक व पादप सुरक्षा के उपाय जब भी आवष्यकता हुआ जानकारी दी । के. वी. के. के मार्ग दर्षन पर ही अषोक महतो ने टमाटर की फसल को रोग एवं कीड़ां से बचाने हेतु जैविक सुरक्षा उपायों को भी अपनाया है ।
सिलाई जीविकोपार्जन का साधन -ंउचय सरोज देवी
श्रीमती सरोज देवी सफल महिला टेलर के रूप में उभर रही हैं जिनके जीवन में हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र की अग्रणी भूमिका रही है।
श्रीमती सरोज देवी की पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वह केवल 6वीं तक की प-सजय़ाई कर सकी और सन् 1996 से वह अपने माता-ंउचयपिता के कृशि कार्य में मदद देने लगी। सन् 2000 में उनकी षादी बोंगा निवासी श्री सुबोध राणा से हुई। इनके पति फर्नीचर का काम करते थे, परन्तु इससे परिवार की आर्थिक स्थिति में कोई खास परिवर्त्तन नहीं आया। उन्हे हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान केन्द्र के गृह विज्ञान द्वारा संचालित ड्रेस डिसाइनिंग कॉर्स की जानकारी मिली। अतः वह जुलाई 2012 में प्रषिक्षण प्राप्त कर अपने हुनर को निखारा। प्रषिक्षण के दौरान इन्होने बच्चों के कपड़े से लेकर बड़ों का परिधान बनाने में दक्षता हासिल किया। जिसमें बाबासूट, विभिन्न डिसाइन के फ्रॉक, सलवारसूट, ब्लाउस, नाइटी आदि बनाने की कला सीखा।
3 महीने का प्रषिक्षण के बाद, इनमें आत्मविष्वास ब-सजय़ा और उन्होने अपने ही घर में एक दुकान खोल ली, जिसमें साज श्रृंगार की विभिन्न वस्तुएॅं रखीं साथ ही सिलाई कार्य भी षुरू किया। षुरूआत में इन्हे तकलीफें आयी परन्तु घर वालों का सहयोग से विषेशकर उनके पति का भरपूर सहयोग से कार्य जारी रखीं। तब से वह ब्लाउस, सलवार सूट आदि बनाकर अच्छी आमदनी कमा रही है। अब उनकी आमदनी 6000 रूपये प्रति माह हो गयी है। आर्थिक सषक्तिकरण के साथ ही उसने मल्टी मॉर्केटिंग की सदस्य बन कर अतिरिक्त आमदनी 12000-ंउचय15000 रूपये प्रति माह कमा कर अपने परिवार को आर्थिक मजबूती प्रदान की। वह अपने दो बच्चों को ‘अंग्रेजी माध्यम‘ से षिक्षा दिलाने का खर्च भी वहन कर रही है। बच्चों के परवरीष एवं प-सजय़ाई का खर्च स्वयं वहन कर रही हैं। अब उनके परिवार के सदस्य उनकी निपुणता एवं कौषलता से बहुत खुष एवं गौराविंत महसूस कर रहे हैं। सरोज न केवल ग्राम वासियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं परन्तु बोंगा निवासी भी प्रेरित हैं। इनकी सफलता पर अन्य सभी महिलायें भी उनसे प्रेरणा पाकर, हॉली क्रॉस कृशि विज्ञान से प्रषिक्षण प्राप्त करने आ रहे हैं।
Phynle making a source of income
Md. Firdaws S/O Md. Yaseem of Sirsia Mohalla of hazaribag town earned his livihood by stiching clothes. Most of the neighbours are in same line so he often through of other source of income through which he can meet his daily needs.He often came to KVK and visited different units and he took all the information regarding different training of KVK
Finally in year 2016 April he attained one week enterprenurship training on White Phenyle making . He and his wife Sama Parween both attended the training. After the training Sama Parveen took 25,00/- loan from SHG group and started this phenyle making. In the begnning it was rather difficult to fixed the market. Door to Door Sama and Mr. Firdaws reached phenyle and slowly people demand. They applied for lincence and after a long process andsucceed to get it. Now they purchased Raw material from Calcutta and in large scale phenyle is made as per demand. Now he has given the phynle Braand name ‘KING”. Now Firdaws and Sama are fully occupied with the pjhynyle making. In the begning their income was only 3000 - 4000 per month. Now it has increased and is earning 12000/- to 15000/- per month. By seeing his progress the family members are happy and inspired by his business.